Maharaj ji Time Ki Sakhi
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Baba ji Maharaj time sakhi |
सतगुरु प्यारी साध संगत जी, "यह सखी महाराज जी के समय की है" एक बार एक सत्संगी सज्जन डेरा में सेवा के लिए गया हुआ था । 5 दिन 6 दिन लगभग सेवा की बस एक दिन रह गया था सेवा को उसको बहुत ही गंभीर चोट लग जाती है। लेकिन उसे चोट लगने से संगत जी वह सत्संगी बहुत ही दुखी होता है सोचता है कि मैं तो सेवा के लिए आया था और सेवा के बदले मुझे ऐसा फल मिला । महाराज जी तो जानी जान थे , जब उसे ले जाया जा रहा था उसके इलाज के लिए तो महाराज उसे रसते मे मिलते है और कहते कि बेटा आज जब तुम सिमरन में जरूर बैठना तो तुम्हें तुम्हारी बात का जवाब जरूर मिल जाएगा । वह सत्संगी जब रात को भजन सिमरन करने के लिए बैठा तो महाराज जी ने उसकी सूरत को चढ़ाए और उसे खुद को दिखाया कि जब वह घर वापस जा रहा था तो रास्ते में उसका बहुत बड़ा एक्सीडेंट होना था । जिसमें उसे बहुत कुछ गवा देना था, लेकिन संतों की सेवा के कारण सूली से सूल हो जाती है , जिसकी वजह से उसे बहुत कम चोट लगती है। जब वह अपनी सूरत को उतरता है तो दोनों हाथ जोड़कर महाराज जी का शुक्रिया करता है और कहता है कि महाराज जी अगर गलती से कोई ऊंचा बोल बोल दिया हो तो माफ करना । मैं अनजान बच्चा हूं। तो संगत जी संत सतगुरु कभी भी अपने बच्चों के साथ बुरा नहीं होने देते। लेकिन वह किसी न किसी बहाने उसकी बड़ी घटना को छोटी में बदल देता है। इसलिए गुरु पर भरोसा रखना चाहिए मलिक पर भरोसा रखना चाहिए मलिक सदा अंग संग होकर हर किसी की संभाल करते जी
और संगत जी जिसको नाम मिला है हुक्म समझ कर नाम दान (शब्द) मंत्र का सिमरन करे । सतगुरु का हुक्म मानने की कोशिश करे जी।
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