SATSANG | सत्संग परमात्मा कहां है कैसे मिलेगा परमात्मा | सत्संग का फायदा

SATSANG | सत्संग परमात्मा कहां है कैसे मिलेगा परमात्मा | सत्संग का फायदा

                          सत्संग |SATSANG 

SATSANG
Satsang | Satsang kya hai



सत्संग 

               सत्संग में जाकर ही हमें 'सत्य का ज्ञान' होता है , हम सच के साथ जुड़ते है, साध संगत जी संत समझाते हैं, कि मालिक तो कण-कण में समाया हुआ है संत सतगुरु समझाते हैं की मालिक से इस सारी सृष्टि का निर्माण हुआ है, मालिक ने शब्द के जरिए इस सारी कयानात को बनाया है कोई भी जगह शब्द से खाली नहीं है, हर एक जगह मालिक के बनाने से ही बनी है इसलिए वह शब्द के रूप में हर जगह में समाया हुआ है, पत्ते-पत्ते जर्रे-जर्रे हर जीव जंतु में वह मालिक समाया हुआ है। 

लेकिन अगर कोई मालिक से मिलना चाहे तो कैसे मिलेगा संत सतगुरु समझाते हैं कि मनुष्य की देह हरि का मंदिर है इसे ऋषि-मुनियों ने नर नारायणी देह कहकर बयान किया है, गुरु साहिबान ने इसे हरि का मंदिर कहा है इसी तरह हर संत सतगुरु ने मनुष्य शरीर को परमात्मा के रहने का घर कहा है परमात्मा के रहने का निवास स्थान कहा है कि परमात्मा को अगर इंसान मिलना चाहे, तो उसे अपने अंदर से मिल सकता है। किसी पुर्ण संत सतगुरु से नाम की दात लेकर, कयोंकि मुर्शिद खुद मालिक से मिला होता है इसलिए वही हमें उस से मिला सकता है। जैसे कि हमने किसी ऐसी जगह जाना हो जिसके बारे में हमें कोई खबर ना हो तो हम सबसे पहले क्या करेंगे कि ऐसे किसी मनुष्य को ढूंढ लेंगे जिसे उस जगह के बारे में पता होगा, तो वह पहले से ही हमें रस्ते में आने वाली रूकावट के बारे में सावधान करेगा और हमें सही तरीके से अपनी मंजिल पर पहुंचा देगा। इसी तरह रूहानियत के लिए भी संत सतगुरु हमारी मदद करते हैं हमें इस भवसागर को पार करने में हमारा मलाह की तरह रास्ता दिखाते हैं और हमें इस भवसागर से पार लगाते हैं। संत समझाते हैं कि मालिक को अपने अंदर मिला जा सकता है और जिसे अंदर मिल जाता है उसे हर जगह फिर वह दिखाई देता है। क्योंकि उसे खुद पता चल जाता है कि मालिक तो अंदर कहीं बाहर नहीं इसलिए मालिक को ढूंढने के लिए घर बार छोड़ने की जरूरत नहीं बाल बच्चों को छोड़ने की जरूरत नहीं, बल्कि इसी संसार में रहते हुए अपने जीवन में सभी फर्ज पूरे करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करते हुए। कुछ वक्त मालिक की भक्ति को देना चाहिए और संसार में बहादुर बनकर रहना चाहिए। आप जी समझाते हैं कि जैसे मुरगाबी पानी में रहती है लेकिन जब भी वह उडती है सूखे परो से उड जाती है कहने का मतलब है कि इस संसार में रहो लेकिन इसकी गलत वासनाओं से बचकर रहो। इतना मत लिप्त हो जाओ कि इसमें फंस जाओ। इसलिए संत महात्मा इसी संसार में अपने परिवार में रहते हुए, भजन बंदगी करने को कहते हैं। अपने काम काज फर्ज पूरे करते हुए सारे कार्य करते हुए, भजन बंदगी कर 'मालिक को पा सकते हैं।


FAQ:- 

प्रशन:- सत्संग किसे कहते है? सत्संग क्या है?

उतर- 'सत्संग का मतलब सच के साथ जुड़ा हुआ, 'सच के साथ मिला हुआ । सत्संग एक स्थान है जहां पर कोई संत महात्मा या फिर कोई ज्ञानी पुरुष हमें सत्य के बारे में बताता है, 'परमात्मा से जुड़ने के लिए हमें क्या करना चाहिए, "परमात्मा से संबंधित बातें हमें बताते हैं" जहां पर रूहानियत के ज्ञान की बातें की जाती हैं, "इसको हम सत्संग कहते हैं"

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