नाम दान लेने से पहले और नाम लेने के बाद |
गुरु प्यारी साध संगत जी जब तक हमें नामदान नहीं मिला होता हमारे मन में नाम दान लेने की बहुत ही ज्यादा इच्छा होती है, हम खूब सेवा करते हैं हम कोई भी सत्संग नहीं छोड़ते ताकि हमें नामदान की दात प्राप्त हो सके , हमारा पूरा की पूरा ख्याल नाम दान लेने पर टिका होता है, कि कब नाम दान मिले और मैं भी भजन सिमरन का अभ्यास कर सकूं । लेकिन जब हमें नामदान मिल जाता है तो क्या होता है हम तो उसके लिए वक्त भी नहीं निकाल पाते । जो कि हमने सतगुरु से नामदान लेते वक्त वादा किया होता है कि अपने वक्त का दसवां हिस्सा में अपने भजन सिमरन के अभ्यास में दूंगा या फिर दूंगी, सोचने वाली बात है कि जब नाम दान नहीं मिला होता तो हमारे अंदर कितनी ज्यादा तड़प होती है , कि हम भी नाम दान ले और भजन सिमरन का अभ्यास करें और जब तक नामदान नहीं मिला होता हम जब दूसरों को देखते हैं कि वह भक्ति कर रहे हैं, भजन सिमरन कर रहे हैं, हमारे मन में भी बहुत इच्छा उठती है कि हमें भी बस जल्दी जल्दी नाम मिल जाए और मैं भी भजन सिमरन करने लग जाऊं लेकिन होता यह है , कि नामदान मिलते ही हम वक्त ही नहीं निकाल पाते साध संगत जी हमें चाहिए कि अपनी तरफ से कोशिश करें अपने अभ्यास को वक़्त देने की, चाहे जितना समय भी निकाल सकें नाम दान लेकर रख नहीं देना चाहिए । जिस तरह टिकट
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लेकर घर में रखने से कोई फायदा नहीं होता । इसी तरह नाम लेकर उसे रखने से कोई फायदा नहीं मिलेगा । जब तक कि समय निकाल कर उसको सिमरन में ना लगाया तो ।