एक पक्का अभ्यासी और एक कच्चा अभ्यासी
साध संगत जी एक महात्मा बहुत ही ज्यादा अभ्यास किया करते थे जब उनका अंत समय आया तो उन्होंने बता दिया कि मैं अब इस दुनिया से जाने वाला हूं तो इसी दौरान उनके कुछ सत्संगियो ने उनको कुछ पैसा देना शुरू कर दिया , मत्था टेकना शुरू कर दिया तो उनके एक दूसरे सत्संगी ने कहा कि महाराज जी अब शरीर छोड़ने वाले हैं उनका ध्यान मत भटका इस पर महाराज जी ने कहा, कोई बात नहीं उन्होंने एक उदाहरण के जरिए समझाया कि जो कच्चा तैराक होता है और जब वह पानी में डूबने लगे अगर उसे उस वक्त यह कहा जाए कि तुम तैरना शुरू कर दो तो वह कभी भी तैर कर बच नहीं सकता । लेकिन जो पक्का तैराक होता है उसे चाहे किसी भी नदी में क्यों ना डाल दो वो तैर कर बाहर आ ही जाता है इसी तरह ही अभ्यास है भजन सिमरन का, जिसने बचपन से ही अभ्यास कर करकर अपने आप को कुल मालिक के साथ जोड़ लिया हो तो अंत समय में चाहे जैसे भी हालात क्यों ना हो वह कुल मालिक से मिल ही जाएगा उसका कोई ध्यान नहीं भटका सकता क्योंकि उसने सारी उम्र तक का अभ्यास किया होता है यह पक्के तैराक की तरह ही है संगत जी इस साखी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि भजन सिमरन हर रोज करना चाहिए भजन सिमरन को पूरा वक्त देना चाहिए नहीं तो हम को आंत समय पछताना पड़ता है जैसे कि महात्मा ने कहा जिसका अभ्यास पक्का होगा वह कभी नहीं डोलता जो पक्का अभ्यासी नहीं उसका कोई पता नहीं कब डॉल सकता है ।
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Sakhi 2022 |