'सत्संग, "SATSANG KYA HAI" SATSANG AUR KYO KARNA CHAHEYE,
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सत्संग SATSANG KYA HAI AUR SATSANG KYO KARNA CHAHEYE |
सत्संग
'सतगुरु, प्यारी "संगत जी 'सत्संग, क्या है ? एक ऐसा सथान है जहां पर हमें सच का एहसास होता है सच के साथ जुड़ने की जरूरत का एहसास होता है सच के साथ क्यों जुड़ना चाहिए, इसके बारे में ग्यान प्राप्त होता है, यह सत्संग किसी गुरु के द्वारा किया जा सकता है या फिर किसी और ज्ञानी पुरुष के द्वारा भी किया जा सकता है। वह पुरष या औरत कोई भी हो सकते है, मकसद है सच्ची रूहानियत बनता, उनके वचन सुनने वालों की संख्या बहुत ज्यादा या कम भी हो सकती है लेकिन जरूरी यह है कि वहा पर नाम की महिमा की जाती है, कम ज्यादा का सवाल नही होता, सवाल होता है कि एक सच्चे खोजी को सच्चा रस्ता बताया जाना,समझाया जाना, ताकि उसके मन मे उठते सवालो के जवाब मिल सके, मन को शांति मल सके।
"सत्संग का अर्थ" ही सच्चाई के साथ जुड़ना है और हम सत्संग में आने का जो उद्देश्य लेकर आते हैं, कहीं ना कहीं वह भी हमारे मन की शांति से जुड़ा हुआ होता है, हम इसकी खुद जरूरत महसूस करते हैं, हमें एक ऐसी चीज की जरूरत होती है जो हमें हमारे अंतर में शांति प्रदान कर सके और इसी सच्ची शांति की खोज में हम सत्संग में आते हैं। संत सतगुरुयो ने भी सत्संग की महत्ता के बारे में समझाया है कि अगर परमात्मा की खोज करना चाहते हो तो पहले तुम्हें किसी कामिल गुरु की, किसी मुर्शद का सत्संग सुनना होगा। क्योंकि सत्संग एक ऐसी जगह है जहां पर सिर्फ और सिर्फ मालिक की महिमा ही गई जाती है, जहां पर यह समझाया जाता है कि मलिक क्या है। उसकी यह सृष्टि कैसे काम कर रही है।
इसका क्या सिद्धांत है संत सतगुरु अक्सर इस बात को समझते हैं। कि जो कुछ भी पैदा हुआ है वह नाम के जरिए पैदा हुआ है और संत गुरु समझते हैं कि नाम कोई मालिक से अलग चीज नहीं है मालिक और नाम दोनों एक ही है। यह वह करतारी शक्ति है जिसका ना कोई आद है ना अंत है यह शुरू से भी थी और अब भी है और हमेशा कायम रहेगी। इसी तरह संत सतगुरु हमें नाम की महिमा के बारे में समझते हैं कि नाम जिसका अर्थ हम परमात्मा से भी लगा सकते हैं, कि नाम की भक्ति करने से ही हमें मुक्ति मिल सकती है,
कलयुग में नाम को सबसे ऊपर माना गया है कि नाम के बिना कलयुग में मुक्ति संभव नहीं, इसलिए अपने जीवन काल में किसी मुर्शद को अपनाकर उनसे नाम लेकर अगर उनकी बताई हुई युक्ति के अनुसार हम भक्त करेंगे, तो मालिक से मिल जाएंगे संत महात्मा समझते हैं। अभी हमें नाम के बारे में पता नहीं जिसके कारण हम जगह-जगह भटकते फिरते हैं। मालिक की खोज करने में हमारा मन हमारी इंद्रियां हमें न जाने कितने ही विषयों भोगों में लगा रहे हैं और हम मन के पीछे लगकर ना जाने कितने ही ऐसे पाप कर्म करते हैं। जिनका भुगतान करने के लिए हमें बार-बार इस भोग जुनी में आना पड़ता है। 84 लाख जुनीया है। अगर बड़े ही अच्छे कर्म किए हो तो तब कहीं जाकर हमें मनुष्य का जनम नसीब होता है और इस जनम में ही हम प्रभु की भक्ति कर सकते हैं और किसी जन्म जुनी में नही, इसलिए एक मनुष्य ही ऐसा जीव है जो गुरु से मिलकर उससे नाम लेकर उसकी भक्ति द्वारा मालिक की प्राप्ति कर सकता है और नाम की असल सच्चाई के बारे में हमें सत्संग के अंदर जाकर ही पता चलता है।
सत्संग का फायदा यह होता है कि हमे नाम के बारे पता चलता है नाम तो हमारे अन्दर है लेकिन सत्संग मे जाकर पता चलता है कि उस नाम को पाने की जुकति सतगुरु के पास है। इस तरहां सत्संग जरिया बनता है जहां पर हम नाम के बारे में जानते हैं,
सच्चा सत्संग कौन सा होता है सच्चा सत्संग वह होता है। जिसमें केवल और केवल प्रभु की भक्ति के बारे में ही बताया जाता है और किसी के बारे में बात नहीं की जाती। किसी की निंदिया चुगली नहीं की जाती। केवल मालिक की भक्ति के बारे नाम के बारे बाते होती है। इसलिए हमारे जीवन में संतों महात्माओं ने सत्संग का बड़ा ही महत्व रखा है। साध संगत जी अगर हो सके तो सत्संग के लिए जरूर वक्त निकालना चाहिए पता नहीं कौन सी बात जो सत्संग में समझाई गई हो हमारा जीवन बदल दे और हम बुरे कर्म छोड़कर एक अच्छे इंसान बन सके मालिक की भक्ति में लग सकें। इसलिए जब भी मौका मिले सत्संग में जरूर जाना चाहिए।
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