गुरु और शिष्य की साखी | जीव वो करता है जो वो खुद चाहता है हुकम नही मानता

गुरु और शिष्य की साखी | जीव वो करता है जो वो खुद चाहता है हुकम नही मानता

SAKHI  

SANTMANT SAKHI



  एक जंगल में साधू और उसका शिष्य रहा करता था साधु ने शिष्य को कहा कि खाना बनाना है जाओ जंगल में से लकड़ी लेकर आओ शिष्य ने सोचा अगर जंगल में गया अगर किसी जानवर ने मुझे खा लिया तो मेरा क्या होगा । उसने अपने गुरु से कहा कि गुरु जी अगर मुझे कुछ हो गया तो आपकी सेवा कौन करेगा गुरु ने कहा चलो अच्छी बात है , मैं खुद ही लकड़ी लेकर आता हूं , रात को जब बारिश पड़ी तो गुरु ने अपने शिष्य से फिर कहा कि जाओ छत पर जाओ छत से पानी बह रहा है ऊपर जाकर सुराख बंद कर आओ शिष्य ने फिर सोचा कि अगर मैं ऊपर चढ़ा अगर मैं गिर गया तो मुझे तो चोट लग जाएगी,  उसने अपने गुरु से कहा कि गुरु जी मैं आपके होते हुए आपके सिर के ऊपर कैसे जा सकता हूं , मेरे पैर छत पर और आप मेरे नीचे होंगे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा, गुरु  ने कहा चलो अच्छी बात है मैं खुद ही ठीक कर आता हूं , जब गुरु छत ठीक कर आया , गुरु ने खाना बनाया तो गुरु ने अपने शिष्य को कहा कि आओ और खाना खा लो, तो शिष्य ने कहा गुरु जी मैं आपका हुकुम कैसे टाल सकता हूं मैं आ रहा हूं दोनों मिलकर खाना खाते हैं , साध संगत  जी यही हालत जीव की है । जीव जो काम अच्छा लगता है, वही करते हैं,  गुरु का हुक्म मानकर भजन सिमरन में वक्त नहीं देता ।