सिमरन भजन ध्यान कयो करना पड़ता है
|| Simran Dhayan ka fayaada ||
Simran bhajan Dhayan |
गुरु प्यारी साध संगत जी जब कोई भी संत महात्मा गुरु हमें कोई सिमरन देते हैं तो सिमरन के साथ ध्यान करने का भी हुकुम करते हैं ध्यान करने का क्या मकसद होता है ध्यान करने का मकसद यही है कि हम सिमरन करते समय ध्यान को अपने तीसरे तिल पर लाएं क्योंकि वही से ही सारा काम बनना है, वहीं से ही सारी यात्रा शुरू होनी है सिमरन करते-करते सत्संगी को अपने ध्यान को किसी खास जगह पर टिकाने के लिए ध्यान की आवश्यकता पड़ती है । हम सभी जानते हैं सोचना और ध्यान करना यह हमारे मन की संभावित आदतें हैं । हम इन्हीं आदतों का फायदा उठाकर इसे सिमरन में ध्यान में लगाते हैं । इन दोनों आदतों को जैसे कि सिमरन करना और सतगुरु का ध्यान करना, इन दोनों ही आदतों का फायदा उठाकर वापस भक्ति में लगाकर परमात्मा की ओर यात्रा करने में लगाते हैं । सतगुरु के स्वरूप का हम ध्यान इसलिए करते हैं क्योंकि हम परमात्मा से मिलना चाहते हैं और सतगुरु ने भक्ति करकर परमात्मा के साथ अपना मेल मिलाप कर लिया होता है और सतगुरु ही एक ऐसे होते हैं जिसका ध्यान करना हमारे लिए सबसे अच्छा है , अगर हम दूसरी चीजों का ध्यान करेंगे तो उससे हमें क्या फायदा मिलेगा पेड़ पौधों का या किसी पत्थर का या फूलों का या मान लीजिए किसी भी चीज का ध्यान करेंगे उससे हमें क्या हासिल होगा अगर सतगुरु का ध्यान करेंगे तो सतगुरु हमें वापस सचखंड ले जाते हैं इसीलिए ध्यान का हमारे सिमरन में बड़ा ही महत्व होता है ।