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मालिक का भाणा |
हमारे चिंता करने से किसी भी समस्या का कोई भी हल नहीं निकलता फ़िक्र (चिन्ता)हमारे कई तरह के विचारों से उत्पन्न होती है ।हमें चाहिए कि हम अपने अंदर पवित्र साफ-सुथरे विचारों की आदत डालें और अपने दुखों कष्टों को भुला दे,जब तक एक मनुष्य हस सकता है । शैतान भी उसका कुछ नहीं बुरा कर सकता । हमारे खिलखिला कर हंसने से कोई खर्चा तो नहीं लगता हमारे लिए हंसना उतना ही आसान से आसान है । जितना चिंता करने से हमारे अंदर बेचैनी का होना । हमें पहले पहले कोशिश करनी पड़ती है, मगर फिर हंसना एक हमारी आदत बन जाती है । हमारे लिए हमारी चिंता इस बात का सबूत है कि हमें परमात्मा और उसकी दया मेहर का कोई विश्वास नहीं रहा । मालिक को अपनी मौज से अपने हुकुम के हिसाब से सब कुछ करने दो हमें यह नहीं सोचना चाहिए , कि हमारी इच्छा से सभी काम हो, अगर हम अपने आपको कुल मालिक की मौज और उसके हुक्म में रखेंगे तो कभी कोई दुख नहीं होगा । हमें दुख का एहसास होना बंद हो जाएगा । इसी को ही हुक्म मानना भी कहते हैं ।