हमारा असली मकसद क्या है सिर्फ यह एक बात समझ लो what should be our real purpose Santmat Vachan

हमारा असली मकसद क्या है सिर्फ यह एक बात समझ लो what should be our real purpose Santmat Vachan

जीवन का असली मकसद क्या है,
जीवन का उद्देश्य क्या है । 
जीवन का मकसद,



साध संगत जी संत महात्मा हमें समझाते हैं कि अगर है, तो सिर्फ एक परमात्मा है और उसकी ही होनद है उसके सिवाय और कुछ भी नहीं उत्पत्ति पालना और विनाश जो कुछ भी है वह सब उस एक कुल मालिक से ही है । अनेकता का जो मूल है वह एक ही है वह कुल मालिक अनेकता की खेल खेलता है । लेकिन वह है एक ही संत महात्मा हमें समझाते हैं,  कि वह कुल मालिक जब चाहे इस खेल को अपने अंदर समा कर अनेक से फिर एक हो जाता है और जब चाहे फिर वह अनेक एक हो जाता है उस ऐक के सिवाय और कुछ नहीं बाकी सब कुछ भरम है । कुल मालिक निरंकार एक है उसके अनेक नाम अनेक गुणो के सूचक हैं संत महात्माओं ने उस  मालिक के अनेक नाम रखे लेकिन अंत में उन्होंने उसको अनामी कह दिया क्योंकि वह परमात्मा नामों की सीमा से ऊपर है ।संत महात्मा हमें उदाहरण के जरिए समझाते हैं कि जिसमें रस है । वह रस भी मानने वाला वह खुद आप है,  इस्त्री भी वही है सेज भी वही है और पति भी वही है । वह कुल मालिक साहिब हर जगह भरपूर है वह मछली पकड़ने वाला भी है और मछली भी वही है पानी भी वही है और जाल भी वही है जाल को भारी करने वाला उसके साथ बांधा गया मनका का भी वही है और मच्छी के पेट में निकलने वाला लाल रंग का रतन भी वही है । वह एक ही प्रीतम अनेक रंगों में प्रगट हो रहा है अपने प्यार की बखश से सुहागिनों को सुखी करने वाला वह परमेश्वर वही है और भाग हीनो को अपने दर्द के विछोड़े में दर्द से तड़पआने वाला भी वही है संत महात्मा हमें बहुत ही निमृता से समझाते हैं की है कुल मालिक आप ही समुंदर हो और आप ही हंस है दिन के समय खिलने वाला कमल भी है । आप ही रात को खिलने वाली कमी भी आप ही हैं और इनको देख कर खुश होने वाला भी आप ही है ।परमात्मा के प्यारे संत महात्मा हमें समझाते हुए फिर आगे हमें समझाते हैं कि प्रभु को उस कुल मालिक को नमस्कार है वह माया भी खुद है शब्द भी आप ही है और ब्रह्मा जा फिर कहे करता भी वह खुद ही है । संत महात्मा इस सृष्टि की अनंत अनेकता का आधार उस परमेश्वर कुल मालिक एक को ही मानते हैं जो कुछ भी हो रहा है उस एक से ही हुआ है और जो कुछ भी होगा और है उससे एक भरपूर से ही होगा ।  इसीलिए संत महात्मा हमें यह भी उपदेश करते हैं कि यह जाते पाते अमीर गरीब सब में एक ही का हर एक इंसान में उस प्रभु का ही नूर समाया हुआ है । सभी एक समान है सभी बराबर हैं सबके अंदर ही एक जितना प्यार और सत्कार के हकदार हैं । कुल मालिक हम सभी का पिता है वह कुल मालिक हम सभी को पालने वाला है ।संतों महात्माओं ने हमें समझाते हुए खबरदार भी किया है कि हम कहीं इस संसार की शक्लो पदार्थों के रिश्तो की झूठी चमक देखकर कहीं गुमराह ना हो जाए हमें इनकी असलियत का असल समझने का यतन करना चाहिए माता पिता पुत्र मित्र संबंधी यह उचित पदवी या ऊंचे महल बंगले आदि कोई असलियत नहीं इनमें से कोई भी चीज सदा के लिए नहीं टिक सकती कोई सच्ची नहीं इनका प्यार भी झूठा है और इनके अंदर से मिलने वाला सुख भी अधूरा है वह कुल मालिक पूर्ण और सच्चा है उसके मिलाप से मिलने वाला आनंद सच्चा और पूर्ण होगा इसीलिए संत महात्मा हमें खबरदार करते हैं

  कि संसार में रहो लेकिन मालिक को कभी भी नहीं भूलना चाहिए मालिक ने जो रिश्ते दिए हैं उनको सच्चाई से ईमानदारी से निभाना चाहिए इसका यह मतलब नहीं कि घर बार छोड़ दे, रिश्ते नाते तोड़ दे रिश्ते नाते प्रेम पूर्वक निभाने चाहिए,  अपने फर्ज पूरे निभाने चाहिए लेकिन अपने असली मकसद को हमेशा अपने आंखों के आगे रखकर चलना चाहिए ।