सभी रिश्ते चाहे बेटे-बेटियों के हो सब गरजो के नाते हैं । इसमें से किसी ने भी मौत के वक्त हमारी सम्भाल नहीं करनी। केवल सतगुरु ही हमारे साथ रहेंगे या भी और वहाँ भी।पर हम अपने इन गरजों के रिश्तों को महत्व देतें है इनके लिये कितना जूठ और बईमानियाँ करते है और सतगुरु का कहना नहीं मानते जो सिर्फ हमारे लिये ही हमारे भले लिये हमसे केवल भजन-सुमिरन को ही करते है
पर हमसे वो भी नहीं होता।और संसारी रिश्तों के लिये हम सारा जीवन बाहरमुखी हो कर गुजार देतें है। अब सोचो सुखी कोन है और दुःखी कौन? सतगुरु हमेशा सत्संग मे समझाते है कि अपने फर्ज को पूरा करो । अपनो से यहा तक कि सभी से प्रेम भी करो, लेकिन ये नही भूलना चाहिए कि हमारा यहा पर आने का मकसद क्या है । इसी तरहां गुरु का कहना मानने कर सिमरन के अभ्यास को समया देना चाहिए ।