Anmol Bachan

🌷🌷🌷🌷🌷🌷यह हर सत्संगी का फर्ज है कि अपने मन को 🌷🌷🌷🌷🌷🌷स्थिर करके तीसरे तिल में पहुँचे, गुरु का फर्ज है सत्संगियों की इस कोशिश में मदद करना और रहनुमाई देना।मन तथा इन्द्रियों को क़ाबू करना और दसवें} द्वार में प्रवेश करना सत्संगी की कोशिश पर निर्भर करता है।इस काम को पूरा करने के लिए 🌷ज़रूरी है अभ्यासी की कोशिश।🌹🌹🌹🌹
                🌲महाराज जी के बचन🌲
जिस शरण हमें नामदान की बख्शिश होती है,हमें भजन सिमरन के लिए आवश्यक दया मेहर भी प्राप्त होती है।उसके बाद कुछ हमारी कोशिश पर निर्भर करता है। जैसा कि बड़े महाराज जी ने ऊपर दिए उदहारण में फ़रमाया है,हमें अपनी कोशिश द्वारा मन को स्थिर करके तीसरे तिल पर पहुँचना है और दसवें द्वार को खोलना है यह काम हमारे लिए सतगुरु नही करेंगें।हम अंदर तभी जा पाएँगे, जब भजन सिमरन के लिए बैठेंगे और अपना ध्यान तीसरे तिल पर एकाग्र करेंगें।यह काम केवल हम ही कर सकते है।अगर हम ऊँचे आत्मिक मंडलों में पहुँचना चाहते है तो हमे यह कार्य करना ही है।वे कदम उठाने है जो हमें उस दिशा की ओर ले जाएँ।हमारे कर्मों से यह पता चलना चाहिए कि आध्यत्मिक उन्नति के लिए हमारी कितनी लगन है।अगर शब्द से जुड़ने की लगन हमारी करनी से ज़ाहिर नही होती,तो इसका मतलब यही है कि या तो हम दुविधा में है या फिर आत्मिक प्रगति करना ही नही चाहते।हमारा जीवन,हमारा कार्य-व्यवहार, हमारी सोच और संतमत के सिद्धांतों के प्रति हमारी लगन ही परमारथ की चाह को दर्शाती है।हमारी भजन बंदगी द्वारा यही ज़ाहिर होना चाहिए।हम उस बच्चे के बारे में क्या सोचेंगे जिसे स्कूल के लिए देर हो गयी है और वह घर में बैठा प्राथर्ना कर रहा है, हे प्रभु! मैं स्कूल देरी से न पहुँचूँ।क्या यह सही नही होगा कि वह प्राथर्ना के साथ साथ कोशिश भी करे और उठकर चलना भी शुरू करें ताकि उसे और देर न हो जाए।उस बच्चे की तरह हमें भी कोशिश करनी चाहिए,भजन सिमरन में लग जाना चाहिए और अपने समय का पूरा सदुपयोग करना चाहिए।🌾🌾🌾🌾🌾